भाजपा में अब उम्र सीमा का बंधन व्यवहारिक नहीं रहा
अवधेश कुमार
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जेल से सशर्त अंतरिम जमानत पर बाहर आने के साथ अपने वक्तव्यों से जिस तरह की चुनावी रणनीति को अंजाम दिया है उसे समझने की आवश्यकता है।
उन्होंने इंडिया के नेताओं से बिल्कुल अलग यह कहा है कि अगले वर्ष सितम्बर के बाद नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री रहेंगे ही नहीं। अगले वर्ष सितम्बर में मोदी जी 75 वर्ष के हो जाएंगे और उन्होंने स्वयं भाजपा के लिए पद पर रहने वालों की उम्र सीमा 75 वर्ष निर्धारित कर दी है। तो वे अपने बनाए नियम के अनुसार स्वयं ही रिटायरमेंट ले लेंगे। जब वह रहेंगे नहीं तो स्वाभाविक है कि प्रधानमंत्री किसी और को बनाएंगे। वे गृह मंत्री अमित शाह को प्रधानमंत्री बना देंगे क्योंकि वही उनके करीबी हैं। वे यह भी कह रहे हैं कि सत्ता में वापस आते ही योगी आदित्यनाथ को भी मुख्यमंत्री पद से हटा देंगे।
अरविंद केजरीवाल की बुद्धि, चतुराई और धूर्तता पर कुछ कहने और लिखने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें पता है कि चाहे जितना विरोध करें नरेंद्र मोदी का प्रभाव आम लोगों पर इतना है कि आसानी से बड़ी संख्या में लोगों को उनके विरुद्ध कर देना या उनके विरोध में वोट डलवा देना संभव नहीं है। लोकप्रियता और जन विश्वास के मामले में इस समय नरेंद्र मोदी सभी नेताओं पर भारी हैं । भाजपा और राजग को मिलने वाले मत में सबसे ज्यादा अनुपात उन्हीं के नाम का शामिल है।
मोदी है तो मुमकिन है जैसा नारा भी उनको केंद्र बिंदु रख कर ही दिया गया है। आम लोगों में उनकी संख्या बहुत बड़ी है जो नरेंद्र मोदी की ईमानदारी, देश के प्रति प्रतिबद्धता, वंचित, गरीब , महिलाओं , युवाओं के लिए बहुत कुछ करने की भावना तथा देश को हर तरह से सुरक्षित रखने की उनकी नीति पर आंख मुंद कर विश्वास करते हैं। तो अरविंद केजरीवाल की रणनीति है कि अगर लोगों में यह भाव पैदा हो गया कि मोदी जी अगले वर्ष सितंबर के बाद प्रधानमंत्री रहेंगे ही नहीं तो उनके नाम पर वोट देने के पहले वह विचार करेंगे। वे सोचेंगे कि आगे प्रधानमंत्री दूसरे को होना है तो हमें उसको वोट देना चाहिए या नहीं देना चाहिए।
दूसरे , योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता भाजपा संगठन परिवार के साथ बाहर भी है। उनके समर्थक लगातार उन्हें शीर्ष पर लाने का अभियान चलाते रहते हैं। तो उनको भी संदेश दिया जाए कि ये योगी जी को मुख्यमंत्री ही नहीं रहने देंगे। यानी हर तरह से योगी समर्थकों और मोदी समर्थकों को भाजपा का विरोधी बनाकर विरोधी दलों के लिए मतदान करने की रणनीति पर केजरीवाल चल रहे हैं। प्रश्न है कि क्या इसका वैसा ही प्रभाव होगा जैसा केजरीवाल सोचते हैं?
यह सच है कि 2014 में सत्ता में आने के बाद भाजपा के अंदर यह संदेश गया कि 75 वर्ष की उम्र सीमा नेताओं के सक्रिय राजनीति में रहने की बनाई गई है। इस पर औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री या अन्य किसी नेता ने कभी अधिकृत बयान नहीं दिया। पार्टी के अंदर यह भाव जरूर था और अनेक नेता सक्रिय राजनीति से बाहर हो गए। लालकृष्ण आडवाणी और पूर्व लोक सभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन का नाम उनमें बड़ा है। डॉ. मुरली मनोहर जोशी सहित ऐसे कई नेताओं के बारे में माना जाता है कि उन्हें टिकट नहीं मिला, पार्टी या सरकार में भूमिका नहीं दी गई तो केवल उम्र सीमा के कारण। पार्टी में मार्गदशर्क मंडल के नाम से एक इकाई भी खड़ी हुई जिसमें बुजुर्ग नेताओं को शामिल किया गया।
माना जाता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आडवाणी एवं वाजपेयी के शीर्ष पर रहते समय ही उम्र सीमा की बात की थी। 2004 में भाजपा की पराजय के कुछ समय बाद तत्कालीन सरसंचालक कु.सी. सुदर्शन ने एक टीवी चैनल को साक्षात्कार देते हुए कहा था कि हम कहते हैं कि अटल जी और आडवाणी जी को स्वयं मार्गदर्शक की भूमिका में आकर नई पीढ़ी को आगे करना चाहिए। यानी उम्र सीमा के साथ नेतृत्व परिवर्तन की बात संघ ने की थी। हालांकि इसके बावजूद संघ ने 2009 में आडवाणी को प्रधानमंत्री की उम्मीदवारी का समर्थन किया। आज का सच दूसरा है। वीएस येदियुरप्पा को 75 वर्ष पार करने के बावजूद कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनाया गया और आज भी वे भाजपा की शीर्ष निर्णयकारी इकाई संसदीय बोर्ड के सदस्य हैं। संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति में 80 पार के लोग भी हैं। इस तरह अब 75 वर्ष की उम्र सीमा का बंधन व्यवहार में दिखाई नहीं पड़ रहा है। भाजपा को समझ आ गया है कि केजरीवाल अत्यंत चतुराई से इस विषय को उठा रहे हैं और अगर इसका जोरदार प्रतिवाद नहीं हुआ तो कुछ न कुछ भ्रम फैल सकता है। वस्तुत: कुछ वर्ष तक व्यवहार में उम्र की बात थी, लेकिन भाजपा ने कार्यकारिणी या राष्ट्रीय परिषद में इसका प्रस्ताव पारित नहीं किया। हो जाता तो यह पार्टी संविधान का भाग होता।
भाजपा के संविधान में किसी भी पद के लिए उम्र सीमा निर्धारित नहीं की गई है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी या कोई किसी उम्र की तक पद पर रहते हैं तो यह भाजपा के संविधान या पार्टी द्वारा पारित प्रस्ताव का उल्लंघन नहीं होगा। इसलिए भाजपा के लिए व्यवहार में केजरीवाल की बातों का कोई मायने नहीं है। तथ्यहीन और झूठी बातें बार-बार बोलकर लोगों को भ्रमित किया जाता है। कई बार कुछ संख्या में लोग प्रभावित भी हो जाते हैं।
इस समय चुनाव परिणाम का बहुत बड़ा दारोमदार मोदी का नाम और उनके नेतृत्व पर टिका है। ऐसे समय अगर यह शिगूफा थोड़े बहुत भी फैल गया कि अपनी बनाई नीतियों के कारण मोदी को अगले वर्ष सितम्बर के अंत तक रिटायरमेंट लेना पड़ सकता है तो भाजपा के संदर्भ में इसका नकारात्मक असर मतदान पर होगा। वैसे भी भाजपा पर ज्यादातर आरोप चाहे वह आरक्षण खत्म करने का या संविधान को समाप्त करने का हो, भ्रम फैलाने वाले ही है।
ये सच्चाई के विपरीत हैं। बावजूद अभियान चल रहा है और संभव है मतदाताओं का एक समूह विश्वास भी कर रहा हो। इसलिए मान कर चलिए कि चुनाव के अंतिम दौर तक यह विषय गूंजता रहेगा। केजरीवाल, उनकी पार्टी तथा दूसरे विपक्षी नेता भी शायद 75 उम्र पर प्रधानमंत्री पद से मोदी के रिटायरमेंट की बात करते रहेंगे और भाजपा इसका खंडन और प्रतिवाद। हालांकि चुनाव के समय विचार होना चाहिए कि क्या अन्य सेवाओं की तरह राजनीति में भी शीर्ष पदों की कोई उम्र सीमा होनी चाहिए? भारत में इसका कभी कोई उत्तर नहीं दिया गया। अनेक लोग असक्त होने के बावजूद चुनाव लड़े, जीते और मंत्री तक बने। बंगाल से अब्दुल गनी खान चौधरी कई चुनाव व्हीलचेयर पर बैठकर लड़े।
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