चंद्रकांता के ‘क्रूर सिंह’ ने साझा किए अभिनय की बदलती दुनिया के अनुभव, साहित्यकारों ने बताए लेखन और यात्राओं के गुर
ताज हिन्द ब्यूरो
लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय में चल रहे चौथे गोमती पुस्तक महोत्सव के चौथे दिन कला, साहित्य और संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिला। हर आयु वर्ग के पाठक पुस्तकों की दुकानों पर उमड़ पड़े, जहाँ उन्होंने विभिन्न भाषाओं और विधाओं की पुस्तकें देखीं और दिन भर आयोजित विचारोत्तेजक सत्रों व सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में भाग लिया। लेखकगंज में चर्चित लेखिका शीला रोहेकर से संवाद हुआ, जबकि शाम को अभिनेता अखिलेंद्र मिश्र ने अपने अभिनय के सफ़र से जुड़े अनुभव साझा कर कार्यक्रम में नाटकीय रंग भर दिए।
चित्रोत्सव ने बच्चों का मन मोहा
एनबीटी-इंडिया और टीम डूडल द्वारा बच्चों के पैवेलियन में आयोजित दो दिवसीय कला महोत्सव “चित्रोत्सव – ड्रा, डूडल, डिस्कवर” के दूसरे दिन भी बच्चों ने विभिन्न कला विधाओं की बारीकियाँ सीखते हुए कार्यक्रम में अपनी कल्पनाओं के रंग भर दिए।
कार्यक्रम की शुरुआत सुविधा मिस्त्री की पॉप आर्ट सेल्फी क्लास से हुई, जहाँ बच्चों ने एक ही रेखा में पेन उठाए बिना जीवंत चित्र बनाना सीखा और उन्हें चमकीले रंगों से सजाया। दूसरे सत्र मेडिटेटिव ट्रीस्केप्स में वंदना बिष्ट ने बच्चों को पेड़ों की आकृतियों में सूक्ष्म पैटर्न भरते हुए मन को शांति देने वाली कला से परिचित कराया।
महोत्सव का समापन रीमा कौशिक द्वारा आयोजित डूडल आर्ट प्रतियोगिता से हुआ, जिसमें बच्चों ने अपने नामों को रचनात्मक डूडल पैटर्न में पिरोया। सर्वश्रेष्ठ 16 प्रतिभागियों को एनबीटी-इंडिया की ओर से प्रमाणपत्र और पुस्तकें प्रदान की गईं।
साहित्य, वंश और भाषा केंद्र में
गोमती पुस्तक महोत्सव के लेखकगंज में डिजिटल साहित्य से लेकर यात्रा वृत्तांत तक पर गहन बातचीत हुई। चर्चित कथाकार वंदना राग और तस्नीम खान, साथ ही कविता कोश के संस्थापक ललित कुमार ने डिजिटल साहित्य की चुनौतियों और प्रयोगों पर विचार रखे। सत्र का संचालन राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. राजेश कुमार ने किया।
दूसरे सत्र ‘लेखक से मिलिए’ में एनबीटी की ओर से योगिता यादव ने चर्चित लेखिका शीला रोहेकर से संवाद किया। तावीज़, मिस सैमुएल: एक यहूदी गाथा और पल्लीपार जैसी कृतियों की लेखिका रोहेकर ने कहा,
“साहित्य हमेशा इतिहास की राजनीतिक घटनाओं को अपने साथ लेकर चलता है। इनके बिना रचना का महत्व अधूरा होता है। लेखक केवल घटनाओं का वर्णन ही नहीं करता, बल्कि उनके समाज और पात्रों पर प्रभाव को भी दर्ज करता है।”
83 वर्षीय लेखिका ने अपने साहित्य पर अपने समुदाय के प्रभाव की चर्चा करते हुए कहा, “मैंने यहूदी समाज के अपमान और संघर्ष को देखा है। यह केवल दस्तावेज़ीकरण नहीं, बल्कि अनुभव है। त्रासदियाँ हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग होती हैं।”
युवा लेखकों के लिए उन्होंने सलाह दी कि भाषा पर अधिकार पाने के लिए अधिक पढ़ें। “धीरे-धीरे, ध्यान से और आत्मसात करके अच्छी किताबें पढ़िए। मैं चाँदनी में पढ़ा करती थी। भाषा पर असली अधिकार इसी समर्पण से आता है।”
तीसरे सत्र “सफ़र की धूप-छाँव” में चर्चित यात्रा-वृत्तांतकारों ने भारत और दुनिया के अपने अनुभव साझा किए और यात्राओं की चुनौतियों व सुरक्षा उपायों पर चर्चा की।
सिनेमा, अभिनेता और साहित्य: अखिलेंद्र मिश्रा
भारतीय सिनेमा और रंगमंच के दिग्गज अभिनेता अखिलेंद्र मिश्र, जिन्होंने चंद्रशेखर आज़ाद से लेकर चंद्रकांता के क्रूर सिंह तक हर किरदार में जान डाली, ने विशेष बातचीत में अपनी किताबों “अभिनय, अभिनेता और अध्यात्म”, “अखिलामृत” और “आत्मोद्धानम्” पर चर्चा की। उन्होंने कहा, “ये पुस्तकें मैंने कोविड महामारी के दौरान घर पर लिखीं। मैं रोज़ सुबह 3 बजे उठकर लिखता था। ये कविताएँ मुझे स्वयं आयीं, जिनमें अध्यात्म, जीवन और पर्यावरण तक के विषय शामिल हैं।”
उन्होंने हिंदी पढ़ने और बोलने की महत्ता पर भी ज़ोर दिया। “चाहे रंगमंच हो या लेखन, यह एक आध्यात्मिक यात्रा है। मंच पर कलाकार विलीन हो जाता है, केवल पात्र जीवित रह जाता है।”
मिश्र ने अपनी कविता “नाटक” का पाठ किया और नाट्यशास्त्र को आज भी अभिनेताओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ बताया।
सांस्कृतिक संध्या
शाम को लखनऊ के कलाकारों ने भव्य सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से वातावरण को जीवंत कर दिया। इसमें सधी हुई कथक प्रस्तुतियाँ, कविताओं का प्रभावशाली पाठ और लखनऊ विश्वविद्यालय तथा एमयूआईटी लखनऊ के छात्रों की संगीत-नृत्य प्रस्तुतियाँ शामिल थीं।
डॉ. कृष्ण सिंह ने भी अपनी मार्मिक कविता “आयो रे सूरज” का प्रभावशाली पाठ किया।
What's Your Reaction?