यम और नियती को पार करके मंच पे अभिनेता जाता है-अभिनेता अखिलेन्द्र मिश्रा
ताज हिन्द ब्यूरो
लखनऊ। भारतीय सिनेमा और रंगमंच के एक दिग्गज अभिनेता, अखिलेन्द्र मिश्रा, अपनी दमदार आवाज़ और बहुमुखी प्रतिभा के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपने अभिनय से हर किरदार में जान फूँक दी है, चाहे वह ‘चंद्रशेखर आज़ाद’ हो या 'चंद्रकांता' का ‘क्रूर सिंह'। गोमती पुस्तक महोत्सव में उनसे ख़ास बातचीत:
'रंगमंच हो या सिनेमा एक अभिनेता हर किरदार के साथ एक आध्यात्मिक यात्रा करता है। चाहे देश का गद्दार हो या देश प्रेमी, रावण या कोई कॉमिक किरदार, इन सबके पीछे अभिनेता की तैयारी होती है जिससे वह एक किरदार को जीवंत करता है।'
संवाद सत्र के दौरान उन्होंने अपनी किताबों'अभिनय, अभिनेता और अध्यात्म', 'अखिलामृत्म' व 'आत्मोत्थानम्' का भी जिक्र किया। भाषा का महत्व बताते हुए उन्होंने हिंदी भाषा को बोलने व पढ़ना ज़रूरी बताया।
"मुझे तो पता भी नहीं था कि मैं लिख सकता हूँ। यह पुस्तकें कोरोना काल की देन हैं। रात को ३ बजे में उठ कर ब्रह्ममुहूर्त में लिखता था। यह कविताएँ आती चली गई और बहुत सारे विषयों पर यह लिखी गई। इनमे अध्यात्म है, जीवन है, पर्यावरण है।'
"नाटक हो या लेखन यह एक अध्यात्मिक यात्रा है।भरतमुनि जी ने नाट्य सास्त्र में कहा है कि जब एक कलाकार, एक अभिनेता मंच में प्रवेश करता है तो उसके प्रवेश द्वार पे ही एक तरफ यम बैठे हैं, एक तरफ नियती बैठी ही। यम और नियती को पार करके मंच पे अभिनेता जाता है, यानि कि उसकी मृत्यों हो गई, उसका भाग्य बदल गया, अब वो जो दिख रहा है मंच पे, वो नहीं है, उसका किरदार है।
अखिलेन्द्र मिश्रा जी ने अपनी कविता "नाटक" का पाठ भी किया। उन्होंने कहा कि नाट्य शास्त्र पढ़ना लेखकों के लिए आज सबसे ज़रूरी है। 'नाट्य शास्त्र के ३६ अध्याय हैं। इनमे से ६, १६ और १७ बहुत महत्वपूर्ण है हर हर उस इंसान के लिए जो लिखना चाहता है या अभिनय करना चाहता है।
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