दूरदराज़ बनाये बस अड्डों तक आवाजाही की क्या हैं यात्री सुविधा?

Sep 28, 2025 - 15:27
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दूरदराज़ बनाये बस अड्डों तक आवाजाही की क्या हैं यात्री सुविधा?

50 रुपये का सफ़र, 250 रुपये भाड़ा
 जहां जाना हैं, वहां का किराया महज 100-50 रुपये, बस अड्डे तक जाने पर ख़र्च दो से तीन गुना 
 रात के अंधेरे में नायता मुंडला से कैसे घर तक आएगी महिला मुसाफ़िर? 

नितिनमोहन शर्मा
'सोने से घड़ावन महंगी' ये कहावत इंदौर जैसे पढ़े लिखे शहर में चरितार्थ हुई है और वह भी जन जन से जुड़े एक अहम फैसले में। फैसला आम आदमी के सफ़र से जुड़ा हैं, जो एकाएक दुष्कर कर दिया गया। बगैर कोई लोक परिवहन की सुविधा जुटाए बीच शहर का बस अड्डा, शहर से करीब 15-20 किमी दूर रवाना कर दिया गया। नए बस अड्डे से ये दूरी एयरपोर्ट, बाणगंगा, विजयनगर आदि इलाको से और भी ज्यादा हैं। अब हालात ये है कि यात्री का जहां जाना है, वहां तक का किराया तो महज़ 100-50 रुपये है लेक़िन बस स्टैंड तक जाने के लिए 200 से 300 रुपये भाड़ा चुकाना पड़ रहा हैं। ये भारी भरकम भाड़ा ऑटो रिक्शा व अन्य निजी लोक परिवहन का हैं। क्योंकि जिम्मेदारों में नए बस स्टैंड तक आने जाने की सिटी बस, आई बस, मैजिक वेन जैसी कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट सुविधा शुरू ही नही की। हैरत की बात है न ये?
रस्म अदायगी के लिए महज़ एक दो दिन पुराने बस स्टैंड पर सिटी बस सुविधा दी गई। शेष शहर के अलग अलग हिस्सों से आम जन कैसे 20 किमी दूर नए बस स्टैंड पहुचेंगे? इसका जवाब इंदौर व इन्दौरी मांग रहें हैं लेक़िन वे सब मौन हैं, जिन्हें जन जन से जुड़े इस मुद्दे पर पहले पहल बोलना था, चिंता करनी थी। ये इंदौर व इंदोरियो के साथ एक बड़ा मज़ाक नही तो क्या हैं कि कोर्ट के एक फैसले के बाद नवलखा बस स्टैंड से अगल बगल के गांव, शहर, क़स्बे के लिए चलने वाली बसें एक ही झटके में जिला बदर कर दिया लेक़िन जिले का एक भी जनता का प्रतिनिधि, जनता से सीधे जुड़े इस फैसले पर कुछ नही बोला। न पक्ष में, न विपक्ष में। न नए बस स्टैंड पर सुविधा जुटाने के मुद्दे पर नेता सक्रिय हुए और न नए बस स्टैंड जाकर यात्री सुविधा की उपलब्धता जानने की कोशिश की।
होना तो ये चाहिए था कि पहले नायता मुंडला वाले नए बस अड्डे तक आने जाने की लोक परिवहन सुविधा खड़ी करनी थी और फ़िर नवलखा व पालदा से संचालित बसों को ले जाकर वहां खड़ा करना था। शहर के हर हिस्से से, कम किराए के सरकारी साधन नया बस अड्डा लाते-ले जाते तो किसे परेशानी? शहरहित में, शहर के बाशिंदे ये भी स्वीकार कर लेते। लेक़िन अब तो हाल ये है कि चापड़ा, हाटपीपल्या जाने वाले को, गंतव्य तक जाने के बस में तो 100-50 रुपये किराया देना है लेक़िन गंतव्य तक ले जाने वाली बसों तक घर से पहुँचने में 200 से 300 रुपये चुकाने की मजबूरी हैं। शहर के एक छोर पर, शहर से बाहर बने इस नए बस स्टैंड तक पहुँचने के लिए क्या साधन है? कितनी सिटी बसे, मैजिक वेन बदलकर नायता मुंडला तक जाएंगे? और ये नायता मुंडला है कहा? किसी ने इस शहर को बताया?
सबसे अहम बात, अकेली महिला मुसाफ़िर के लिए क्या सुविधा? इसकी फ़िक्र भी किसी ने नही की कि रात होने के बाद महिला मुसाफ़िर ही नही, आम यात्री कैसे शहर तक आएगा या शहर से बस अड्डे तक पहुँचेगा? ऑटो वाले तो नाईट चार्ज लेंगे ही न? वे जब शहर में ही नाइट चार्ज वसूल लेते है तो शहर से बाहर 15 से 20 किमी का कितना भाड़ा लेंगे? रात के वक्त नए बस स्टैंड पर क्या हालत हैं? बिजली, रोशनी, सुरक्षा के पर्याप्त बंदोबस्त हैं? इसकी चिंता फैसले होने के 5 दिन बाद भी किसी ने नही की। न सरकार के स्तर पर, न प्रशासन के मोर्चे पर और न ' गूंगे गुड्डे-गुड़ियाओं ' की संज्ञा पा चुके ज़िले के 9 विधायक, 2 सांसद, 2 मंत्री, 85 पार्षदों के मोर्चे पर कोई हलचल हैं। बची बात इंदौर के ' जागरूक नागरिकों , व ' सामाजिक संगठनों ' की..तो वे भी हर बार की तरह बस चुप्पी साधे हुए हैं। जैसे ये सब ' अबूझमाड़ ' के निवासी हो।

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